ब्रह्मांड में हम अकेले नहीं हैं। धरती के बाहर हमें जीवन भले ही ना मिला हो लेकिन अंतरिक्ष से कई मेहमान हमारे करीब से गुजर जाते हैं। आमतौर पर मंगल और बृहस्पति के बीच स्थित बेल्ट से आने वाली चट्टानें धरती ही नहीं, सौर मंडल और ब्रह्मांड के जन्म और विकास के कई सवालों का जवाब दे सकती हैं। ये चट्टानें होती हैं ऐस्टरॉइड्स। ऐस्टरॉइड डे पर जानते हैं इनसे जुड़ी कुछ खास बातें-
- क्या होते हैं ऐस्टरॉइड?ऐस्टरॉइड्स वे चट्टानें होती हैं जो किसी ग्रह की तरह ही सूरज के चक्कर काटती हैं लेकिन ये आकार में ग्रहों से काफी छोटी होती हैं। हमारे सोलर सिस्टम में ज्यादातर ऐस्टरॉइड्स मंगल ग्रह और बृहस्पति यानी मार्स और जूपिटर की कक्षा में ऐस्टरॉइड बेल्ट में पाए जाते हैं। इसके अलावा भी ये दूसरे ग्रहों की कक्षा में घूमते रहते हैं और ग्रह के साथ ही सूरज का चक्कर काटते हैं।
- कितने विशाल होते हैं?करीब 4.5 अरब साल पहले जब हमारा सोलर सिस्टम बना था, तब गैस और धूल के ऐसे बादल जो किसी ग्रह का आकार नहीं ले पाए और पीछे छूट गए, वही इन चट्टानों यानी ऐस्टरॉइड्स में तब्दील हो गए। यही वजह है कि इनका आकार भी ग्रहों की तरह गोल नहीं होता। ब्रह्मांड में कई ऐसे ऐस्टरॉइड्स हैं जिनका डायमीटर सैकड़ों मील का होता है और ज्यादातर किसी छोटे से पत्थर के बराबर होते हैं। ग्रहों के साथ ही पैदा होने के कारण इन्हें स्टडी करके ब्रह्मांड, सौर मंडल और ग्रहों की उत्पत्ति से जुड़े सवालों के जवाब खोजे जा सकते हैं।
- कैसे ऐस्टरॉइड्स हैं खतरनाक?अगर किसी तेज रफ्तार चट्टान के धरती से करीब 46 लाख मील से करीब आने की संभावना होती है तो उसे स्पेस ऑर्गनाइजेशन्स खतरनाक मानते हैं। NASA का Sentry सिस्टम ऐसे खतरों पर पहले से ही नजर रखता है। इस सिस्टम के मुताबिक जिस ऐस्टरॉइड से धरती को वाकई खतरे की आशंका है वह है अभी 850 साल दूर है।
- धरती के लिए चिंता?साल 2880 में न्यूयॉर्क की empire state building जितना बड़ा ऐस्टरॉइड 29075 (1950 DA) के पृथ्वी की ओर की आने की आशंका है। हालांकि, वैज्ञानिकों को विश्वास है कि आने वाले वक्त में Planetary Defense System विकसित कर लिया जाएगा जिस पर काम पहले ही शुरू हो चुका है।
- ऐस्टरॉइड और उल्कापिंड एक ही चीज है? उल्कापिंड ऐस्टरॉइड का ही हिस्सा होते हैं। किसी वजह से ऐस्टरॉइड के टूटने पर उनका छोटा सा टुकड़ा उनसे अलग हो जाता है जिसे उल्कापिंड यानी meteroid कहते हैं। जब ये उल्कापिंड धरती के करीब पहुंचते हैं तो वायुमंडल के संपर्क में आने के साथ ये जल उठते हैं और हमें दिखाई देती एक रोशनी जो शूटिंग स्टार यानी टूटते तारे की तरह लगती है लेकिन ये वाकई में तारे नहीं होते। और ये Comet यानी धूमकेतु भी नहीं होते।
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