काबुल तालिबान ने मंगलवार को घोषणा की है कि देश में अस्थायी रूप से 1964 का संविधान लागू किया जाएगा। यह संविधान महिलाओं को वोटिंग का अधिकार देता है। तालिबान के कार्यवाहक न्याय मंत्री ने एक बयान जारी कर कहा कि तालिबान ने अफगानिस्तान के लोकतंत्र के स्वर्ण युग के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले संविधान को लागू करने की योजना बनाई है। हालांकि इसमें कई तरह के संशोधन भी शामिल किए जाएंगे। आखिर 1964 के संविधान में ऐसा क्या है जो तालिबान नए कानून बनाने के बजाय इसे लागू कर रहा है और तालिबान उस दौर को 'स्वर्णिम युग' क्यों कह रहा है? अफगानिस्तान में वह दौर था देश के आखिरी राजा मोहम्मद जहीर शाह का जिन्होंने 1964 का संविधान बनाया था। इतिहास के सबसे शांतिपूर्ण 40 सालतालिबानी मंत्री मावलवी अब्दुल हकीम शरी ने कहा कि इस्लामिक अमीरात अस्थायी रूप से पूर्व राजा मोहम्मद जहीर शाह के समय के संविधान को अपनाएगा। इस दौरान संविधान में उन कानूनों का पालन नहीं किया जाएगा जो शरिया लॉ और इस्लामी अमीरात के सिद्धातों के विपरीत पाया गया। अफगानिस्तान के पूर्व राजा मोहम्मद जहीर शाह ने 40 साल देश पर शासन किया और इसे अफगानिस्तान के इतिहास में सबसे 'शांतिपूर्ण' समय माना जाता है। 15 अक्टूबर 1914 को काबुल में उनका जन्म हुआ और 2007 में काबुल में ही उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। कुर्सी से हटते ही बदली देश की किस्मतमहीनों की बीमारी के बाद उनका निधन हुआ। तत्कालीन अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई ने उन्हें अफगान लोकतंत्र का संस्थापक और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बताया। जहीर शाह ने 1933 से 1973 तक अफगानिस्तान पर शासन किया। उनके भाई ने उन्हें पद से हटा दिया था। जहीर के हाथों से अफगान शासन की कमान जाने के बाद देश के बुरे दिन शुरू हो गए। इसके बाद अफगानिस्तान में तख्तापलट हुए, युद्ध, हमले और नरसंहार हुए और लाखों लोगों की जान गई। पिता की हत्या के बाद संभाला देशजहीर शाह पश्तून शासकों की एक लंबी कतार का हिस्सा थे। 1774 में स्थापित राजवंश के वह अंतिम शासक थे। आज भी अफगान उनके शासनकाल को इतिहास के सबसे 'स्वर्णिम युग' के रूप में याद करते हैं। उन्होंने फ्रांस में पढ़ाई की और मिलिट्री ट्रेनिंग के लिए काबुल लौटे। अपने पिता की हत्या के बाद उन्होंने देश की कमान अपने हाथों में ले ली। शुरू में कम उम्र और अनुभवहीन होने की वजह से वह शासन के लिए किताबों पर निर्भर रहते थे और उनके तीन चाचा सरकार चलाते थे। अफगानिस्तान का 'स्वर्णिम युग'यह सिलसिला दो दशकों तक चला। धीरे-धीरे उन्होंने आत्मविश्वास हासिल किया और 1953 में अपने पिछड़े क्षेत्र के आधुनिकीकरण की देखरेख करते हुए शासन पर पूरी तरह से नियंत्रण हासिल कर लिया। उन्होंने महिलाओं के लिए 'पर्दे' को समाप्त करने का समर्थन किया। देश के बुनियादी ढांचे का विकास करने के लिए विदेशी नकदी का इस्तेमाल किया। वह प्रतिद्वंद्वी सोवियत और पश्चिमी हितों के बीच संतुलन बनाए रखने में कामयाब रहे। 1973 में इटली में छुट्टियां मनाते हुए जहीर शाह को उनके चचेरे भाई और बहनोई प्रिंस दाउद ने तख्तापलट करते हुए अपदस्थ कर दिया। जहीर शाह की मदद ले रहा तालिबानइसके बाद जहीर शाह करीब 29 साल तक इटली में निर्वासन में रहे। हालांकि बाद में एक तख्तापलट में दाउद की मौत हो गई। कम्युनिस्ट सरकार की स्थापना के लिए 1979 में सोवियत सैनिकों ने देश में प्रवेश किया। इसके बाद से अफगानिस्तान जहीर शाह के शासनकाल जैसी शांति को दोबारा देखने के लिए तरस गया। फिर जो हुआ वह इतिहास है और आज अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा है जो देश चलाने के लिए जहीर शाह के संविधान की मदद ले रहा है।
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