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बीजिंग/नई दिल्ली भारत से लेकर चीन तक दुनियाभर में गंभीर ऊर्जा संकट पैदा हो गया है। हालत यह है कि भारत में कोयला से चलने वाले कई बिजली संयंत्र बंद हो गए हैं, वहीं दुनिया की फैक्ट्री कहे जाने वाले चीन में कई इलाकों में कंपनियों को कुछ घंटे ही बिजली की सप्लाई हो पा रही है। पश्चिम एशियाई देश लेबनान तो अंधेरे में डूब भी गया है। वहीं यूरोप में गैस के लिए उपभोक्ताओं को बहुत ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है। इस वैश्विक ऊर्जा संकट से पूरी दुनिया जूझ रही है और अब कई देशों के अंधेरे में डूबने का खतरा मंडराने लगा है। भारत के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश के थर्मल बिजली संयंत्रों में अब कुछ ही दिनों का कोयला बचा है। यूपी के कई पावर प्लांट को कोयले की कमी के कारण तो बंद कर दिया गया है। उधर, अमेरिका में शुक्रवार को एक गैलन गैसोलिन के लिए कीमत 3.25 डॉलर पहुंच गई जबकि अप्रैल में यही कीमत 1.27 प्रति गैलन थी। दरअसल, कोरोना काल के बाद अब जब दुनिया की अर्थव्यवस्था एक बार फिर से उफान पर आ रही है, अचानक से पैदा हुआ ऊर्जा संकट सप्लाइ चेन पर संकट ला दिया है। यही नहीं इस संकट से भूराजनीतिक तनाव भी बढ़ रहा है। ऊर्जा संकट के लिए कई कारक जिम्मेदार वह भी तब जब दुनियाभर के नेता जलवायु परिवर्तन को ठीक करने के लिए Cop26 बैठक करने जा रहे हैं। अब इस ताजा संकट ने वैश्विक ग्रीन एनर्जी क्रांति की वास्तविकता को लेकर सवाल उठा दिए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इस ऊर्जा संकट के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं। इसमें मुख्य रूप से कोरोना के बाद दुनिया में अचानक से आई आर्थिक तेजी जिम्मेदार है, वह भी तब जब पिछले 18 महीने में जीवाश्म ईंधन को निकालने की दिशा में विभिन्न देशों ने बहुत कम काम किया है। आमतौर पर भीषण ठंड की वजह से यूरोप में ऊर्जा के भंडार लगभग खत्म हो जाते हैं। यही नहीं कई चक्रवाती तूफानों ने खाड़ी देशों की तेल रिफाइनरी को बंद कर दिया। चीन और ऑस्ट्रेलिया के तनावपूर्ण संबंध तथा समुद्र में कम हवा चलने से भी दुनियाभर में ऊर्जा संकट गहरा गया है। वॉशिंगटन पोस्ट से बातचीत में ऊर्जा मामलों के विशेषज्ञ डेनिअल येर्गिन ने कहा कि यह संकट अब एक ऊर्जा बाजार से दूसरे ऊर्जा बाजार में पहुंच गया है। ऊर्जा संकट की वजह से सरकारों को जनता की कड़ी प्रतिक्रिया का डर सता रहा है। पूरा लेबनान अंधेरे में डूब गया, बिजली स्टेशन बंद जलवायु परिवर्तन पर Cop26 शिखर बैठक से ठीक पहले नवीकरणीय ऊर्जा के पैरोकारों का मानना है कि यह संकट दर्शाता है कि हमें जीवाश्म ईंधनों से आगे बढ़ना होगा। वहीं इसके आलोचकों का कहना है कि हवा और सूरज से बनने वाली बिजली से मांग पूरी नहीं हो पा रही है। विश्लेषकों को अब डर लग रहा है कि ऊर्जा की कमी और ज्यादा दाम से वित्तीय स्थिति को ठीक करने के प्रयासों को झटका लग सकता है। इस बीच कई यूरोपीय देशों ने आरोप लगाया है कि रूस इस आपदा में अवसर तलाश रहा है और गैस के दाम बढ़ा दिए हैं। चीन, भारत, यूरोप में चल रहे संकट के बीच लेबनान में भी बिजली संकट गंभीर हो गया है। लेबनान में ईंधन की कमी के कारण कई दिनों के लिए बिजली कटौती का ऐलान किया है। लेबनान में दो सबसे बड़े बिजली स्टेशनों ने काम करना बंद कर दिया है। इसके कारण पूरा लेबनान अंधेरे में डूब गया। राजनीतिक अस्थिरता और आपसी खींचतान ने लेबनान में बिजली संकट को और ज्यादा बढ़ा दिया है। स्काई न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, अल ज़हरानी और दीर अम्मार बिजली स्टेशनों पर ऊर्जा उत्पादन 200 मेगावाट से नीचे गिर गया। भारत में भी कोयले का 2-4 दिन का ही स्टॉक बचा ईंधन की कमी के कारण लेबनान के कई फैक्ट्रियों को बंद कर दिया गया है। इस कारण खाने-पीने के सामान की भी कमी हो गई है। लोग कालाबाजारी के जरिए सामान खरीदने को मजबूर हैं। पेट्रोल पंपों पर भी गाड़ियों की कई किलोमीटर लंबी कतारें देखी जा रही हैं। भारत में भी कोयले से चलने वाले 135 पावर प्लांट में से आधे से ज्यादा ऐसे हैं, जहां कोयले का स्टॉक खत्म होने वाला है। इनमें से कई पावर प्लांट में केवल 2-4 दिन का ही स्टॉक बचा है। अगर ऐसा हुआ तो देश के कई हिस्सों में अंधेरा छा जाएगा और इनमें राजधानी दिल्ली भी शामिल होगी। राजस्थान और पंजाब के कुछ हिस्सों में बिजली की कटौती शुरू भी हो गई है। कोयला आधारित संयंत्र, थर्मल पावर प्लांट की कैटेगरी में आते हैं। भारत में इस्तेमाल होने वाली बिजली की आपूर्ति 71 फीसदी थर्मल पावर प्लांट्स के जरिए की जाती है।
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