সোমবার, ১১ অক্টোবর, ২০২১

परमाणु बम: दो 'अब्‍दुल' की कहानी, कलाम बने भारत के राष्‍ट्रपति, कादिर को पाकिस्‍तानी जेल

इस्‍लामाबाद/नई दिल्‍ली पाकिस्‍तान के 'इस्‍लामिक परमाणु बम' के जनक कहे जाने वाले कुख्‍यात वैज्ञानिक अब्‍दुल कादिर खान का निधन हो गया है। कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद दुनिया की तबाही का हथियार बनाने वाला यह परमाणु तस्‍कर उठ नहीं सका और अंतत: इस्‍लामाबाद में उसकी मौत हो गई। यह कादिर की करनी का अंजाम ही था कि उसके जीवन के आखिरी 17 साल 'कैद' में बीते और रिहाई की भीख मांगते हुए उसकी मौत हो गई। अब्‍दुल कादिर की तुलना पाकिस्‍तान में भारत के 'मिसाइल मैन' राष्‍ट्रपति अब्‍दुल कलाम से होती थी। दोनों ही वैज्ञानिकों ने दो पड़ोसी देशों और आपस में कट्टर दुश्‍मनों को परमाणु हथियारों से लैस किया लेकिन उनकी नियत‍ि एक-दूसरे से बिल्‍कुल उलट रही। भारत को अग्नि और पृथ्‍वी जैसी मिसाइलों और परमाणु बम की बेजोड़ ताकत से लैस करने वाले 'चाचा कलाम' को देश का राष्‍ट्रपति बनाया गया। कार्यकाल के दौरान कलाम की सादगी दुनियाभर में मिसाल दी जाती थी। कलाम जनता के राष्‍ट्रपति साबित हुए और देशभर में उनकी लोकप्रियता रही। कलाम के निधन पर पूरा भारत रो पड़ा था। शायद यह कलाम की लोकप्रियता ही थी कि अब्‍दुल कादिर खान उनसे जलते थे। बीबीसी को दिए एक इंटरव्‍यू में पाकिस्‍तानी वैज्ञानिक ने कहा कि कलाम एक 'साधारण वैज्ञानिक' थे। कादिर ने यह भी आरोप लगाया कि तत्‍कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मुस्लिम वोट हासिल करने के लिए कलाम को राष्‍ट्रपति बनाया। पाक सेना ने कादिर खान को बनाया बलि का बकरा कलाम ने जहां मिसाइल और परमाणु बम से भारत का मान बढ़ाया, वहीं अब्‍दुल कादिर खान ने लीबिया और उत्‍तर कोरिया को परमाणु तकनीक बेचकर पाकिस्‍तान का नाम दुनिया की नजर में मिट्टी में मिला दिया। कादिर खान के इस पाप में तत्‍कालीन पाकिस्‍तानी सेना भी शामिल थी लेकिन उन्‍हें बलि का बकरा बनाया गया। पाकिस्‍तानी मीडिया के मुताबिक अब्‍दुल कादिर खान परमाणु तस्‍करी का खुलासा होने के बाद साल 2003 से ही नजरबंद कर दिए गए। इसके बाद अब्‍दुल कादिर खान ने कई बार लाहौर हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट से रिहाई की गुहार लगाई लेकिन उन्‍हें कहीं सुनवाई नहीं मिली। यहां तक कि उन्‍हें सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश होकर अपनी बात रखने की भी अनुमति नहीं दी गई। कादिर खान के घर के बाहर आईएसआई का कड़ा पहरा रहता था। उन्‍हें परिवार वालों को छोड़कर किसी से मिलने नहीं दिया जाता था। भारत के राष्‍ट्रपति अब्‍दुल कलाम ने भारत के ज्‍यादातर हिस्‍सों, यूरोप और अमेरिका की यात्रा की लेकिन अब्‍दुल कादिर खान आजीवन घर रूपी 'जेल' में सड़ते रहे। पाकिस्‍तान को डर सता रहा था कि अगर अब्‍दुल कादिर खान को खुला छोड़ा गया तो आतंकियों के हाथ में परमाण तकनीक लग जाएगी। यही नहीं विदेशी खुफिया एजेंस‍ियों के उन्‍हें पकड़ लेने का खतरा भी मंडरा रहा था। इमरान खान अब्‍दुल का‍दिर खान को देखने तक नहीं गए अब्‍दुल कादिर खान की मौत के बाद इमरान सरकार ने उन्‍हें भले ही राजकीय सम्‍मान के साथ दफनाया हो लेकिन जब वह जिंदगी और मौत से जूझ रहे थे तब इमरान खान और उनका कोई मंत्री देखने तक नहीं गया था। अब्‍दुल कादिर ने डॉन को दिए अपने अंतिम साक्षात्‍कार में कहा था, 'मैं इस बात से बेहद दुखी हूं कि न तो प्रधानमंत्री इमरान खान और न ही उनकी कैबिनेट के सदस्‍यों ने मेरे स्‍वास्‍थ्‍य के बारे में हालचाल लिया।' 'पाकिस्‍तान के रक्षक' कहे जाने वाले एक्‍यू खान ने कहा कि पूरा देश उनकी सलामती की दुआएं कर रहा था लेकिन सरकार की ओर से किसी ने भी उनकी सुध नहीं ली। पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम में जनक कहे जाने वाले कादिर खान को परमाणु प्रसार की बात स्वीकार करने के बाद पद से हटा दिया गया था। खान को जब से पद से हटाया गया है तभी से वह भारी सुरक्षा के बीच इस्लामाबाद एक इलाके में अलग-थलग रहते थे। हालांकि, प्रशासन का कहना था कि उन्हें सुरक्षा कारणों से इस तरह से रखा गया था। 1971 की जंग में भारत के हाथों पाकिस्तान की शर्मनाक हार और दो टुकड़ों में बंट जाने ने उनकी नफरत की आग को इतना भड़का दिया कि नीदरलैंड्स में उन्होंने परमाणु तकनीक की जासूसी और चोरी की। अब्‍दुल कादिर ने ऐसे चुराई परमाणु बम की तकनीक अब्‍दुल कादिर 1972 में नीदरलैंड में डच, ब्रिटिश और जर्मन परमाणु वैज्ञानिकों के टॉप सीक्रेट प्रोजेक्ट से बतौर ट्रांसलेटर जुड़े थे। वह एंग्लो-डच-जर्मन न्यूक्लियर इंजिनियरिंग कंसोर्टियम Urenco के लिए काम करने लगे। उनका काम तकनीक से जुड़े डॉक्युमेंट्स का जर्मन भाषा से डच में अनुवाद करना था। खान ने यहां 1975 तक काम किया और यही पर टेक्निकल डॉक्युमेंट्स और परमाणु तकनीक की चोरी की जिसकी मदद से आगे चलकर पाकिस्तान के लिए परमाणु बम बनाया। वही परमाणु बम, जिसकी बदौलत वह आज दुनिया को ब्लैकमेल करता है। 1983 में एक डच कोर्ट ने खान को परमाणु जासूसी का दोषी भी ठहराया था। फरवरी 2004 में उन्होंने लीबिया, ईरान और उत्तर कोरिया को परमाणु तकनीक बेचने की बात खुद भी कबूल की थी।


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