
तेहरान ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए इजरायली सेना की हमला करने की धमकी से माहौल तनावपूर्ण हो गया है। इस बीच ईरान ने भी पलटवार करते हुए सयुंक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को खत लिखा है। ईरान ने चेतावनी दी है कि इजरायली सैन्य कार्रवाई के गंभीर परिणाम होंगे। ईरान ने कहा कि इजरायल ने उकसावे वाली धमकियों को चेतावनी के स्तर तक पहुंचा दिया है। ईरान ने कहा कि इजरायली धमकियों से यह साबित होता है कि वह देश के शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ पहले हुए हमलों के लिए जिम्मेदार है। दरअसल, ईरान ने 120 किलो 20% संवर्धित यूरेनियम का उत्पादन किया है। पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र की न्यूक्लियर वॉचडॉग ने इसका आकलन किया था लेकिन ताजा आंकड़ा उससे कहीं ज्यादा है। सितंबर में इंटरनैशनल अटॉमिक एनर्जी एजेंसी ने कहा कि ईरान के पास 20% संवर्धित यूरेनियम की मात्रा 84.3 किलो है जो तीन महीने पहले 62.8 किलो थी। इजरायल का आरोप है कि ईरान परमाणु बम बनाना चाहता है और इसीलिए वह संवर्धित यूरेनियम को 60 या उससे ज्यादा फीसदी संवर्धित करना चाहता है। संयुक्त व्यापक कार्य योजना Joint Comprehensive Plan of Action या JCPOA: साल 2015 में अमेरिका और अन्य देशों के साथ हुए समझौते में वादा किया गया था कि अगर ईरान अपने न्यूक्लियर प्रोग्राम को सीमित करेगा तो उसे आर्थिक फायदा पहुंचाया जाएगा। इसके जरिए तेहरान को न्यूक्लियर बम बनाने से रोकनी को कोशिश की गई थी। साल 2018 में अमेरिका की डोनाल्ड ट्रंप सरकार ने इस डील से हाथ पीछे खींच लिए लेकिन ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, चीन और रूस इस समझौते को बचाने में लगे रहे। समझौते में शामिल बाकी देशों ने वादा किया था कि ईरान को रिसर्च सेक्टर के लिए जरूरी 20% संवर्धित यूरेनियम दिया जाएगा। उसे खुद 3.67% से ज्यादा यूरेनियम संवर्धन करने की इजाजत नहीं थी। यूरेनियन संवर्धन से क्या होता है? यूरेनियम में एक दुर्लभ रेडियोऐक्टिव आइसोटोप होता है U-235 जिसका कम मात्रा में इस्तेमाल न्यूक्लियर रिऐक्टर्स में ऊर्जा के लिए किया जाता है और ज्यादा मात्रा में इस्तेमाल परमाणु बमों में किया जाता है। यूरेनियम संवर्धन के जरिए U-235 की मात्रा को सेंट्रिफ्यूज से बढ़ाया जाता है। यह मशीन तेज गति पर बिना रिफाइन किए गए यूरेनियम को स्पिन करती है। इंटरनैशनल अटॉमिक एनर्जी एजेंसी के मुताबिक ईरान के पास फरवरी में 2,967 किलो यूरेनियम था जो परमाणु समझौते की तुलना में 14 गुना ज्यादा है। यह इतना है कि अगर इसे हथियार बनाने लायक संवर्धित कर दिया गया तो 3 बमों को ऊर्जा दे सकते हैं। इसमें से 20 % संवर्धित यूरेनियम फिलहाल 17.6 किलो है जो समझौते के तहत उसके पास 2030 तक ही होना चाहिए था। ईरान से दुनिया को चिंता क्यों? दुनिया को इसे लेकर चिंता इसलिए है क्योंकि जैसे-जैसे इसे संवर्धित किया जाता है, इसकी प्रकिया और ज्यादा आसान हो जाती है और कम सेंट्रिफ्यूज की जरूरत होती है। यूरेनियम को Uranium hexafluoride गैस के रूप में सेंट्रिफ्यूज में डाला जाता है। यहां भारी U-238 आइसोटोप हल्के U-235 आइसोटोप से अलग हो जाते हैं। हाई-स्पीड पर सेंट्रिफ्यूज चलने से हल्के ऐटम ऊपर निकल आते हैं और भारी ऐटम नीचे बैठ जाते हैं। पहले क्या था ईरान का प्लान? Joint Comprehensive Plan of Action के पहले ईरान ने यूरेनियम का भारी इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार कर लिया था जिससे वह ज्यादा संवर्धित यूरेनियम को आसानी से बना लेता और कुछ ही हफ्तों में परमाणु हथियार बना पाता। ईरान एक हेवी वॉटर रिऐक्टर भी बना रहा था जो बम बनाने का दूसरा तरीका हो सकता था। JCPoA के बिना ईरान अनेक जगहों पर अनेक सेंट्रिफ्यूज लगा सकता था और कितनी भी मात्रा में यूरेनियम को संवर्धित करके जमा भी कर सकता था। वह इन्हें टेस्ट करके विकसित भी कर सकता था। JCPoA से लगी क्या नकेल? JCPoA के बाद उसे 10 साल में नतांज परमाणु बिजली संयंत्र में 5,060 IR-1 सेंट्रिफ्यूज लगाने की इजाजत होती। सेंट्रिफ्यूज की संख्या और टाइप की भी सीमा तय है। 15 साल तक ईरान 3.67% से ज्यादा संवर्धित यूरेनियम तैयार नहीं कर सकता। वह कम संवर्धित यूरेनियम 300 किलो तक नहीं रख सकता और संवर्धन सिर्फ नतांज प्लांट में कर सकता है। 20 साल तक उसे इंटरनैशनल अटॉमिक एनर्जी एजेंसी को सेंट्रिफ्यूज के पार्ट्स के उत्पादन की मॉनिटरिंग का ब्योरा देना होगा। 25 साल तक यूरेनियम की खदान का ब्योरा देना होगा। ईरान को हमेशा अतिरिक्त प्रोटोकॉल को मानना होगा और सब्सिडी अरेंजमेंट को लागू करना होगा। वह ऐसे रिसर्च नहीं कर सकता जो परमाणु हथियार के विकास में काम आए।
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