শনিবার, ৪ ডিসেম্বর, ২০২১

अंग्रेजों का 'काला कानून' बना पाकिस्तानी मुस्लिम कट्टरपंथियों का हथियार, ईशनिंदा की आड़ में कर रहे अल्पसंख्यकों की हत्या

इस्लामाबाद पाकिस्तान, कड़े ईशनिंदा कानून वाला देश, ऐसा देश जहां ईशनिंदा के लिए फांसी का भी प्रावधान है। लेकिन अक्सर देखा गया है कि मामला कोर्ट तक पहुंचने से पहले ही आरोपी कट्टरपंथियों का शिकार हो जाता है। शुक्रवार को भी ऐसा ही हुआ जब भीड़ ने ईशनिंदा के 'संदेह' में एक श्रीलंकाई नागरिक की पीट-पीटकर पहले हत्या कर दी और फिर उसके शव को जला दिया। ईशनिंदा से जुड़ा हत्या का यह कोई पहला मामला नहीं है। इतिहास को खंगालेंगे तो पाएंगे कि उग्र भीड़ ने सिर्फ अफवाहों की ज़द में आकर पूरे-पूरे घर और समुदाय को निशाना बनाया। अमेरिकी सरकार के सलाहकार पैनल की रिपोर्ट कहती है कि दुनिया के किसी भी देश की तुलना में पाकिस्तान में सबसे अधिक ईशनिंदा कानून का इस्तेमाल होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो पाकिस्तान में इसका सबसे ज्यादा दुरुपयोग होता है। इस कानून की कहानी शुरू होती है 1860 से... दरअसल ईशनिंदा कानून अंग्रेजों ने 1860 में बनाया था। इसका मकसद धार्मिक झगड़ों को रोकना और एक-दूसरे के धर्म के प्रति सम्मान को कायम रखना था। दूसरे धर्म के धार्मिक स्थल को नुकसान पहुंचाने या धार्मिक मान्यताओं या धार्मिक आयोजनों का अपमान करने पर इस कानून के तहत जुर्माना या एक से दस साल की सजा होती थी। सेंटर फ़ॉर रिसर्च एंड सिक्योरिटी स्टडीज़ की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1947 तक भारत में ईशनिंदा के सात मामले सामने आए थे। 1947 में विभाजन के बाद पाकिस्तान ने अंग्रेजों के इस कानून को जारी रखा, इतना ही नहीं 1980 से 1986 के बीच इसे और ज्यादा सख्त कर दिया गया और इसमें मौत के प्रावधान को जोड़ दिया गया। अब तक 78 लोगों की कोर्ट के बाहर हो चुकी है हत्यापाकिस्तान के अल्पसंख्यक समुदाय इस कानून का मुख्य शिकार बनते हैं। नेशनल कमीशन फ़ॉर जस्टिस एंड पीस की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1987 से 2018 तक दरम्यान मुसलमानों के खिलाफ 776, अहमदिया समुदाय के खिलाफ 505, ईसाइयों के खिलाफ 226 और हिंदुओं के खिलाफ 30 ईशनिंदा के मामले सामने आए हैं। सनद रहे कि इनमें से किसी को भी मौत की सजा नहीं मिली है, इसके बावजूद कोर्ट से बाहर अब तक 78 लोगों की हत्या की जा चुकी है। ईशनिंदा के ज्यादातर मामले फर्जी होते हैं जिन्हें कोर्ट खारिज कर देता है लेकिन कट्टरपंथी इन्हें कभी माफ नहीं करते। हिंदू डॉक्टर का क्लिनिक और कई घरों में लगाई आगसिंध में मई 2019 में एक हिंदू डॉक्टर रमेश कुमार पर ईशनिंदा का आरोप लगा। कहा गया कि वह कुरान के पन्नों में लपेटकर दवाइयां दे रहे हैं। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया तो भीड़ ने उनके क्लिनिक और मोहल्ले के कई हिंदू घरों को जला दिया। ये कहानी सिर्फ रमेश जैसे अल्पसंख्यकों की नहीं है। पाकिस्तान में ईशनिंदा का सबसे बड़ा चेहरा बन चुकी आसिया बीबी ने इसकी असल कीमत चुकाई है। उन पर आरोप लगा कि उन्होंने 'कुएं से पानी पीकर उसे अपवित्र कर दिया'। 2010 में अदालत ने उन्हें दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई। कोर्ट से रिहाई के बाद मुश्किल हुई आसिया की जिंदगीआसिया ने इस फैसले को चुनौती दी और उच्च न्यायालय में अपील की। 2015 लाहौर हाई कोर्ट ने भी उनकी अपील खारिज कर दी जिसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट पहुंची। 2018 में पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने आसिया के हक में फैसला सुनाते हुए उनकी सजा रद्द कर दी। ईशनिंदा के आरोप में जिंदगी के आठ साल जेल में गुजारने के बाद अब आसिया बीबी के लिए पाकिस्तान जैसे कट्टरपंथी मुल्क में जिंदगी गुजारना आसान नहीं था, लिहाजा वह 2019 में कनाडा चली गईं। ये सिर्फ एक कहानी है, लगभग हर साल ऐसे कई मामले सामने आते हैं जहां सिर्फ शक के चलते भीड़ किसी की हत्या कर देती है। भीड़ ने चर्च और ईसाइयों के मोहल्ले में लगाई आगसाल 2009 में गोजरा के ईसाइयों पर कुरान के अपमान के आरोप में भीड़ ने हमला कर दिया। हजारों की संख्या में मुस्लिमों ने 40 से ज्यादा घरों और एक चर्च में आग लगा दी जिसमें आठ ईसाई मारे गए। इसी तरह 2014 में गुजरांवाला में अहमदी समुदाय के तीन सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। आरोप लगा कि उन्होंने फेसबुक पर 'ईशनिंदा वाली बातें' पोस्ट की थीं। मरने वालों में एक 55 वर्षीय महिला, उसकी सात साल की बच्ची और उसकी छोटी बहन शामिल थे। पाकिस्तान के इस कानून की अंतरराष्ट्रीय मंच पर कई बार आलोचन हो चुकी है, यहां तक कि यूरोपीय संघ की ओर व्यापारिक प्रतिबंध की नौबत तक आ गई थी लेकिन पाकिस्तान सरकार इस कानून के दुरुपयोग की तरफ मुंह करने बचती है। इतिहास में पहली बार बच्चे पर ईशनिंदा के आरोपशनिवार को पाकिस्तानी मूल के कनाडाई लेखक तारेक फतह ने एक वीडियो ट्वीट किया। इसमें श्रीलंकाई नागरिक के हत्यारों को अपना 'गर्व' के साथ अपना जुर्म कबूल करते देखा जा सकता है। पाकिस्तान में बीते अगस्त में एक आठ साल के हिंदू बच्चे के खिलाफ ईशनिंदा का मामला दर्ज किया गया था। पुलिस ने बच्चे को हिरासत में लिया था जिस पर आरोप था कि उसने मदरसे की लाइब्रेरी में टॉयलेट की थी। यह पाकिस्तान के इतिहास का पहला मामला था जब एक बच्चे के खिलाफ ईशनिंदा का मामला दर्ज हुआ। महिला ने खुद को बताया पैगंबर तो मिली सजा-ए-मौतइसी साल सितंबर में पाकिस्तान में एक महिला स्कूल प्रिंसिपल को ईशनिंदा के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई थी। इतना ही नहीं, कोर्ट ने उस महिला के ऊपर 5000 रुपए का जुर्माना भी लगाया था। महिला टीचर ने साल 2013 में पैगंबर मोहम्मद को इस्लाम का अंतिम पैगंबर मानने से इनकार कर दिया था। उसने खुद को इस्लाम का पैगंबर होने का दावा भी किया था। इसी बात को लेकर एक स्थानीय मौलवी ने कोर्ट में केस दायर किया था, जिसपर सितंबर में फैसला आया था। पाकिस्तान में ईशनिंदा जैसे कानून का इस्तेमाल इसकी मूल भावना के ठीक विपरीत होता है। जिस तरह से भीड़ बेखौफ होकर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाती है, उससे साफ दिखता है कि कट्टरपंथियों में न ही पाकिस्तान पुलिस का कोई डर है और न ही सरकार का।


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